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शक के सामने हार गई मुहब्बत,पति और बच्चों को जिसके लिए छोड़ा, उसी ने छीन ली सांसें

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 14 सित॰
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 15 सित॰

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एकतरफा प्रेम, संदेह और अंत में खून – पिंकी की जिंदगी ने जिस मोड़ पर आकर दम तोड़ा, वह बेहद दर्दनाक और झकझोर देने वाला था।


करीब 11 साल पहले, पिंकी ने वह फैसला लिया जो समाज में अक्सर औरतों से नहीं जुड़ता- अपने पति और दो बच्चों को छोड़कर वह मुकेश पुजारी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगी। यह रिश्ता उसने प्रेम के भरोसे, एक नई जिंदगी की उम्मीद के साथ चुना था। पहले पति से हुए दोनों बच्चे उनके पिता के पास ही रह गए, और पिंकी ने अपने जीवन में एक नई राह अपनाई।


मुकेश पुजारी पहले से ही विवाहित और दो जवान बेटों का पिता था। वह जिला अस्पताल में एंबुलेंस चालक था और अधिकारियों की निजी गाड़ियों तक चलाता था। भले ही वह अपने परिवार के साथ भी जुड़ा रहा, लेकिन पिंकी के साथ उसका रिश्ता एक छिपी हुई मगर स्थायी साझेदारी जैसा बना रहा। उसने पिंकी को भभूतावाला बाग में रहने के लिए मकान दिलवाया और पास में ही ब्यूटी पार्लर भी खुलवाया, जिससे पिंकी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके।


शुरुआती वर्षों में दोनों का संबंध स्थिर दिखाई दिया, लेकिन समय के साथ हालात बदलने लगे। पिंकी की सोशल मीडिया पर बढ़ती सक्रियता, रील बनाना, लोगों से संवाद करना- यह सब मुकेश को नगवार गुजरने लगा। उसे पिंकी की हर गतिविधि में शक नजर आने लगा। वह असुरक्षित महसूस करता था और यह संदेह धीरे-धीरे हिंसक स्वभाव में बदलने लगा।


सूत्रों के अनुसार, पिंकी और किसी युवक से केवल बातचीत करना भी मुकेश को गवारा नहीं था। सोशल मीडिया पर उसकी मौजूदगी, रील्स बनाकर खुद को अभिव्यक्त करना- यह सब पिंकी की आज़ादी का हिस्सा था, लेकिन मुकेश की निगाह में यह विश्वासघात बन गया। रिश्ते में अब प्रेम की जगह अविश्वास और नियंत्रण की भावना ने ले ली थी।


घटना की रात, जब सब कुछ शांत था, करीब एक बजे मुकेश ने पिंकी को फोन कर बाहर बुलाया। दोनों के बीच कहासुनी हुई। यह कोई सामान्य झगड़ा नहीं था, बल्कि वह जहर था जो सालों से धीरे-धीरे पनप रहा था। संबंधों में आई खटास अब टूटने की कगार पर थी, लेकिन इस टूटन को मुकेश ने सहने के बजाय खून से धोने का रास्ता चुना।


पिंकी की हत्या सिर्फ एक महिला की जान जाना नहीं है, यह उन अनगिनत औरतों की त्रासदी है जो अपने फैसलों की कीमत समाज, संदेह और पुरुषवादी स्वामित्व की भावना से चुकाती हैं। एक ओर उसने अपने बच्चों, अपने अतीत को छोड़कर एक नए जीवन की शुरुआत की थी, वहीं दूसरी ओर उस रिश्ते ने ही उसे अंतिम सांस तक पहुंचा दिया।


यह कहानी न सिर्फ हत्या की है, बल्कि यह उस मौन पीड़ा और नियंत्रणकारी रिश्तों की परतें भी खोलती है, जिनमें प्रेम की आड़ में स्त्री की स्वतंत्रता को कुचला जाता है। पिंकी की मौत एक सामाजिक चेतावनी है- कि जब रिश्तों में बराबरी, भरोसा और स्वतंत्रता की जगह संदेह और स्वामित्व ले लेता है, तो अंत अक्सर मृत्यु या विनाश पर ही होता है।

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