MahaKumbh 2025: शंकराचार्य बनने से पहले जरुरी है दंडी स्वामी की प्रक्रिया, विस्तार में देखें
- ANH News
- 21 जन॰
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महाकुंभ 2025 के आयोजन में इस बार दंडी संन्यासियों का अखाड़ा सेक्टर 19 में स्थापित किया गया है। दंडी संन्यासियों की सबसे प्रमुख पहचान उनका दंड है, जिसे परमात्मा और उनके बीच की कड़ी माना जाता है। इस अखाड़े में शास्त्र और परंपराओं के अनुयायी दंडी संन्यासी अपनी विशेष जीवनशैली और साधना के माध्यम से सनातन धर्म के सर्वोच्च संन्यासी होने का प्रमाण देते हैं।
क्या है दंड का महत्व?
शास्त्रों के अनुसार, दंड को भगवान विष्णु का प्रतीक माना गया है। इसे 'ब्रह्म दंड' भी कहा जाता है। दंडी संन्यासियों के लिए दंड केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि दिव्यता और उनकी साधना का केंद्र है। दंडी संन्यासी प्रतिदिन अपने दंड का अभिषेक, तर्पण और पूजन करते हैं। पूजन के समय यह दंड खुला रहता है, लेकिन अन्य समय पर इसे आवरण से ढककर रखा जाता है।
माना जाता है कि दंड में ब्रह्मांड की दिव्य शक्तियां निहित होती हैं, और इसकी शुद्धता बनाए रखना अनिवार्य है। यही कारण है कि अपात्र और अनधिकृत व्यक्तियों को इसे खुला दिखाने की अनुमति नहीं होती।
शंकराचार्य बनने से पहले दंडी स्वामी बनना अनिवार्य
जगद्गुरु शंकराचार्य बनने की प्रक्रिया में दंडी स्वामी बनना अनिवार्य है। आचार्य जितेंद्रानंद सरस्वती बताते हैं कि शंकराचार्य बनने से पहले 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन और कठोर साधना करनी होती है। इसके बाद ही कोई व्यक्ति दंडी संन्यासी बन सकता है।
जीवन का उद्देश्य: समाज और राष्ट्र सेवा
दंडी संन्यासियों का जीवन पूरी तरह समाज और राष्ट्र सेवा को समर्पित होता है। अद्वैत सिद्धांत का पालन करते हुए वे निर्गुण निराकार ब्रह्म की उपासना करते हैं। वर्तमान में पूरे देश में लगभग एक हजार दंडी संन्यासी हैं।
दंडी संन्यासियों की मृत्यु और मोक्ष प्राप्ति
दंडी संन्यासियों की परंपराओं के अनुसार, उनके निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार नहीं किया जाता। दीक्षा के समय ही उनकी अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी हो जाती है, जिसे 'जीवन्मुक्ति' का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद मृत्यु के उपरांत उनकी समाधि बनाई जाती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वे मोक्ष को प्राप्त कर चुके होते हैं।
परंपराओं और साधना का प्रतीक
दंडी संन्यासी सनातन हिंदू धर्म के सर्वोच्च साधक माने जाते हैं। उनका जीवन कठोर नियमों और तपस्या का उदाहरण है। महाकुंभ में दंडी संन्यासियों का अखाड़ा देखने का यह विशेष अवसर श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से प्रेरणादायक है।





