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AIIMS में आधी रात को बवाल, PG डॉक्टरों के बीच भिड़ंत, धारदार हथियार से हमला, 2 घायल

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 15 अक्टू॰
  • 2 मिनट पठन
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ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में उस वक्त हड़कंप मच गया जब देर रात पीजी डॉक्टरों के बीच चल रही बहस ने हिंसक झड़प का रूप ले लिया। यह घटना एम्स में आयोजित एक शैक्षणिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘पाइरेक्सिया’ के अंतिम दिन सामने आई, जहां छात्रों के बीच हुई कहासुनी देखते ही देखते मारपीट और हाथापाई में तब्दील हो गई।


जानकारी के अनुसार, यह विवाद एम्स ऋषिकेश और जौलीग्रांट के एक निजी मेडिकल कॉलेज के पीजी छात्रों के बीच हुआ। कार्यक्रम की सांस्कृतिक संध्या के दौरान किसी बात को लेकर दोनों पक्षों में पहले बहस हुई, जो जल्द ही हिंसा में बदल गई। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, झगड़े के दौरान किसी छात्र ने धारदार हथियार का भी इस्तेमाल कर दिया, जिससे दो डॉक्टर गंभीर रूप से घायल हो गए। घायल डॉक्टरों को तुरंत एम्स की इमरजेंसी यूनिट में भर्ती कराया गया, जहां उनका इलाज जारी है।


इस घटना ने न सिर्फ संस्थान की छवि पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि आयोजनों की निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। बताया जा रहा है कि कार्यक्रम में रात 10 बजे के बाद तक डीजे बजाया गया, जिससे माहौल और अधिक उत्तेजित हो गया। कुछ छात्रों के बीच शराब के सेवन को लेकर भी तीखी बहस हुई थी, हालांकि इसकी पुष्टि अधिकारिक रूप से नहीं की गई है।


घटना की सूचना मिलते ही एम्स चौकी पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले ही अधिकांश छात्र घटनास्थल से निकल गए। चौकी प्रभारी साहिल वशिष्ठ ने बताया कि दो लोगों के घायल होने की जानकारी मिली है, लेकिन अब तक किसी पक्ष की ओर से कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है। यदि तहरीर मिलती है तो उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी।


उधर, एम्स प्रशासन ने भी इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया है। संस्थान के जनसंपर्क अधिकारी संदीप कुमार सिंह ने बताया कि यह छात्र-छात्राओं द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम था और झगड़े की जानकारी मिलने के बाद प्रशासन ने पूरी स्थिति का संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न दोहराई जाएं, इसके लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे और आंतरिक अनुशासन व्यवस्था को और मजबूत किया जाएगा।


यह घटना न केवल शैक्षणिक अनुशासन पर सवाल खड़े करती है, बल्कि भविष्य में छात्र आयोजनों की निगरानी के लिए ठोस दिशा-निर्देश तय करने की जरूरत को भी रेखांकित करती है।

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