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नन्ही परी का आरोपी SC से बरी, परिजन ने दी आत्मदाह की धमकी

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 15 सित॰
  • 3 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 16 सित॰

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11 वर्ष पुरानी नन्ही परी के खौफनाक और दुखद मामले ने एक बार फिर देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। यह मामला एक हृदयविदारक रेप और हत्या का है, जिसमें मुख्य आरोपी अख्तर अली को सुप्रीम कोर्ट से बरी कर दिए जाने के बाद लोगों में गहरा आक्रोश व्याप्त हो गया है। उत्तराखंड के हल्द्वानी और पिथौरागढ़ जैसे शहरों में प्रमुख स्थानों पर रैलियों का आयोजन किया गया, जिनमें जनता का गुस्सा सड़कों पर उमड़ पड़ा। पीड़िता के ताऊजी ने चेतावनी दी है कि यदि तीन दिनों के भीतर रिव्यू पिटीशन दायर नहीं की गई, तो वे आत्मदाह कर लेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले पांच वर्षों से पूरा परिवार इस मामले की जानकारी से वंचित रहा है और अब जब न्याय की प्रक्रिया फिर से शुरू होने की उम्मीद जगी है, तो उसकी उम्मीदें भी टूटने लगी हैं। ताऊजी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू तभी संभव है जब राज्य सरकार इस संदर्भ में आदेश देगी।


रविवार की सुबह 10 बजे से लोगों ने नगर के रामलीला मैदान में एकत्र होकर एक सभा का आयोजन किया। इस सभा में उन्होंने सरकार की नीतियों और वकीलों पर सवाल उठाए, जो कि न्याय दिलाने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। वक्ताओं ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह ऐसे वकील नियुक्त कर रही है जो न्याय तक पहुंचने में बाधा बन रहे हैं। परिजनों को मामले की सही जानकारी भी नहीं दी गई, जबकि निचली अदालत और हाईकोर्ट ने आरोपी को फांसी की सजा सुनाई थी। मगर सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों की कमी के कारण मुख्य आरोपी अख्तर अली को बरी कर दिया, जिससे पीड़ित परिवार का भरोसा टूट गया है।


यह मामला 20 नवंबर 2014 का है, जब काठगोदाम के शीशमहल क्षेत्र में एक विवाह समारोह के दौरान 6 वर्षीय नन्ही बच्ची के साथ जघन्य अपराध हुआ। आरोप है कि दरिंदों ने बच्ची के साथ बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी। इस क्रूरता के बाद पुलिस ने पांच दिन बाद एफआईआर दर्ज की। मामला तेज़ी से फास्ट ट्रैक कोर्ट में पहुंचा, जहां आरोपी को फांसी की सजा सुनाई गई, जबकि दूसरे आरोपी को पांच साल की सजा मिली, और एक नाबालिग को बरी कर दिया गया। परन्तु, 2019 में उच्च न्यायालय ने मुख्य आरोपी अख्तर अली को फांसी की सजा सुनाई, जबकि अन्य दोनों को भी सजा मिली। उम्मीद थी कि न्याय सुनिश्चित हो गया है, लेकिन अचानक ही सब कुछ उलट गया और आरोपी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।


इस हादसे के पीड़ित परिवार और पूरे प्रदेश में इस फैसले के बाद भारी निराशा और आक्रोश व्याप्त है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस जघन्य मामले में पीड़ित परिवार से बातचीत की और उन्हें आश्वासन दिया कि राज्य सरकार उनके साथ पूरी तरह खड़ी है। उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया कि इस प्रकरण पर न्याय विभाग और अनुभवी वकीलों से विधिक सलाह लेकर, सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने का हरसंभव प्रयास किया जाएगा। मुख्यमंत्री आवास पर हुई विस्तृत चर्चा में यह फैसला लिया गया कि न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे। इस बैठक में भाजपा के वरिष्ठ नेता और जिले के पदाधिकारी भी मौजूद रहे, जिन्होंने कहा कि सरकार पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है।


यह मामला न केवल उत्तराखंड ही बल्कि पूरे देश के लिए एक ज्वलंत उदाहरण बन गया है कि समाज में न्याय व्यवस्था कितनी जटिल और कभी-कभी असमर्थनीय हो जाती है। पीड़ित परिवार का आक्रोश और न्याय की आस अभी भी जीवित है, और सभी की निगाहें अब न्यायालय के पुनर्विचार और सरकार के कदमों पर टिकी हैं।

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