NFHS की रिपोर्ट: उत्तराखंड में बच्चों का ठिगनापन घटा, इन दो जिलों में हुआ उल्टा प्रभाव
- ANH News
- 19 सित॰
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अपडेट करने की तारीख: 20 सित॰

उत्तराखंड में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में ठिगनापन कम होने की अच्छी खबर के बीच, पौड़ी और चमोली जनपदों में इस समस्या में बढ़ोतरी देखी गई है। यह तथ्य राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के नवीनतम आंकड़ों में सामने आया है। एम्स के विशेषज्ञ इस असमान प्रवृत्ति की वजहों का पता लगाने के लिए इन जिलों में गहन शोध करने की योजना बना रहे हैं और इसके लिए राज्य सरकार से सहयोग की अपील की है।
एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2005 में उत्तराखंड में पांच साल से कम उम्र के लगभग 44 प्रतिशत बच्चे ठिगनापन की समस्या से जूझ रहे थे, जो 2021 तक घटकर 27 प्रतिशत रह गया है। यह दर्शाता है कि प्रदेश में ठिगनापन कम करने के प्रयास सफल रहे हैं और उत्तराखंड इस मामले में देश के आठवें स्थान पर आ गया है। प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में यह समस्या तेजी से घट रही है, जिससे स्वास्थ्य और पोषण सुधार की दिशा में सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं।
लेकिन इस समग्र सुधार के बावजूद पौड़ी और चमोली जिलों में बच्चों के ठिगनापन की दर में पिछले पांच वर्षों में वृद्धि हुई है, जो चिंता का विषय है। विशेष रूप से चमोली जिले में ठिगनापन में 0.4 प्रतिशत और पौड़ी जिले में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। यह संकेत है कि इन क्षेत्रों में पोषण संबंधी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं, जिनका समाधान आवश्यक है।
एम्स की सामुदायिक चिकित्सा विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर वर्तिका सक्सेना ने बताया कि ठिगनापन की इस बढ़ोतरी के कारणों का पता लगाने के लिए एम्स शोध करना चाहता है ताकि स्थिति की गहन समझ हासिल की जा सके और प्रभावी समाधान निकाले जा सकें। इस पहल के लिए राज्य सरकार से सहयोग की उम्मीद है, ताकि बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें।
ठिगनापन में कमी लाने के मामले में सिक्किम देश में सबसे आगे है, जहाँ घटाव दर 7.7 प्रतिशत है और वहां पांच साल से कम उम्र के 22.3 प्रतिशत बच्चे ठिगनापन का शिकार हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य हैं, जहाँ भी ठिगनापन की समस्या में उल्लेखनीय कमी आई है, लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में बच्चे इस समस्या से प्रभावित हैं।
उत्तराखंड में बच्चों के ठिगनापन को कम करने में विभिन्न योजनाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रोफेसर वर्तिका ने बताया कि कुपोषित बच्चों को गोद लेने की योजना, जो प्रधानमंत्री कार्यालय के उपसचिव मंगेश घिल्डियाल द्वारा रुद्रप्रयाग में डीएम रहते हुए शुरू की गई थी, बेहद सफल रही है। इसके अलावा आंचल अमृत योजना, बाल पलाश योजना, महालक्ष्मी किट योजना और मुख्यमंत्री दाल पोषित योजना भी इस दिशा में सहायक साबित हुई हैं। इन योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन से प्रदेश में पोषण स्तर में सुधार हुआ है, जिससे ठिगनापन की समस्या में कमी आई है।
इस तरह उत्तराखंड में जहां समग्र रूप से ठिगनापन घट रहा है, वहीं कुछ विशेष जिलों में इस समस्या की बढ़ोतरी पर ध्यान देना और उचित रणनीतियों के माध्यम से उसका समाधान निकालना आवश्यक हो गया है ताकि प्रदेश के सभी बच्चे स्वस्थ और समृद्ध जीवन जी सकें।





