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सबकुछ छीन गया...धराली की पीड़ा लेकर प्रधानमंत्री से मिले आपदा पीड़ित, आंसुओं में बयां किया दर्द

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 12 सित॰
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 13 सित॰

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराखंड दौरे के दौरान जौलीग्रांट एयरपोर्ट स्थित राज्य अतिथि गृह में धराली गांव के आपदा पीड़ित ग्रामीणों की उनसे मुलाकात एक बेहद भावुक क्षण में बदल गई। 5 अगस्त को आई भीषण आपदा में सब कुछ गंवा चुके इन ग्रामीणों ने प्रधानमंत्री के सामने अपना दर्द और वेदना साझा की। उनकी आंखों में आंसू थे, आवाज़ में कंपन और दिल में उस दिन की टीस साफ झलक रही थी।


मुलाकात के दौरान कामेश्वरी देवी, जो अपने जवान बेटे आकाश को इस आपदा में खो चुकी हैं, इतनी भावुक हो गईं कि वह कुछ बोल भी नहीं सकीं। उनकी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उन्होंने बस इतना ही कहा कि इस त्रासदी ने हमसे सब कुछ छीन लिया- न केवल हमारा घर-परिवार, बल्कि हमारा भविष्य भी।


प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे प्रतिनिधियों में धराली ग्राम प्रधान अजय नेगी, बीडीसी प्रतिनिधि सुशील पंवार, महिला मंगल दल की अध्यक्ष सुनीता देवी और पीड़िता कामेश्वरी देवी शामिल थीं। सभी ने मिलकर 5 अगस्त की रात के भयावह मंजर को प्रधानमंत्री के सामने रखा।


ग्राम प्रधान अजय नेगी ने बताया कि उन्होंने इस आपदा में अपने चचेरे भाई सहित कई करीबी लोगों को खोया है। बीडीसी सदस्य सुशील पंवार ने रोते हुए बताया कि उनके छोटे भाई और उसके पूरे परिवार का इस आपदा में अंत हो गया। वहीं, सुनीता देवी का घर, होमस्टे और उनकी वर्षों की मेहनत से तैयार की गई बगिया भी एक पल में मलबे में तब्दील हो गई।


अब तक लापता लोगों में से केवल कामेश्वरी देवी के बेटे आकाश का शव ही बरामद हो पाया है, बाकी लोग आज भी मलबे के नीचे दबे अज्ञात भविष्य का हिस्सा बने हुए हैं।


प्रधान अजय नेगी ने मीडिया को जानकारी दी कि उन्होंने प्रधानमंत्री को धराली गांव की तबाही की एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है। उन्होंने पुनर्वास, रोजगार के अवसरों की बहाली और कृषि ऋण माफ करने की मांग भी की।


प्रधानमंत्री मोदी ने आश्वासन दिया कि केंद्र और राज्य सरकार मिलकर राहत और पुनर्वास के कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर आगे बढ़ा रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हर पीड़ित को हरसंभव मदद दी जाएगी ताकि वे दोबारा अपने जीवन को खड़ा कर सकें।


यह मुलाकात सिर्फ एक सरकारी संवाद नहीं थी, बल्कि एक ऐसी घड़ी थी जिसने यह दिखा दिया कि प्रकृति की मार केवल घरों को नहीं ढहाती, वह इंसानी हौसलों और दिलों को भी गहराई तक तोड़ जाती है। धराली गांव की पीड़ा आज उत्तराखंड की collective memory का हिस्सा बन चुकी है- एक ऐसी याद, जिसे भुला पाना आसान नहीं होगा।

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