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पूर्व राष्ट्रपति कोविंद परिवार संग पहुंचे परमार्थ, माँ गंगा का किया आरती पूजन

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 2 दिन पहले
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भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पत्नी सविता कोविंद और बेटी स्वाति कोविंद के साथ परमार्थ निकेतन आश्रम पहुंचकर आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक यात्रा की एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर कदम रखा। आश्रम के पावन वातावरण में परमार्थ गुरुकुल के ऋषिकुमारों ने पुष्प वर्षा, शंख ध्वनि और वेदमंत्रों से उनका हार्दिक स्वागत किया।


आश्रमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने पूर्व राष्ट्रपति का उत्साहवर्धक अभिनंदन किया और उन्हें रुद्राक्ष का पौधा भेंट किया। यह पौधा मां गंगा के पावन तट पर विशेष पूजा-अर्चना के साथ प्रदान किया गया, जो आध्यात्मिक और पारंपरिक महत्व से ओतप्रोत था।


महात्मा गांधी के आदर्शों पर हुई गहन वार्ता

स्वामी चिदानंद सरस्वती और रामनाथ कोविंद के बीच हुई संवाद में भारतीय संस्कृति, जीवन मूल्यों, और संस्कारों की महत्ता पर विशेष जोर दिया गया। स्वामी ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का जीवन स्वयं एक प्रेरणा स्रोत है। एक साधारण ग्रामीण परिवेश से उठकर भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचना उनकी सादगी, समर्पण और नैतिक मूल्यों का प्रतीक है।


उन्होंने बताया कि भारतीयता केवल एक भौगोलिक शब्द नहीं, बल्कि एक भावना है, जिसमें विविधता में एकता, संस्कृति में श्रद्धा और सह-अस्तित्व की भावना निहित है। यह वह सार है जो भारतीय समाज को विश्व में विशिष्ट बनाता है।


रामनाथ कोविंद ने गांधी के रामराज्य की व्याख्या की

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महात्मा गांधी के ‘रामराज्य’ के विचार को केवल धार्मिक या आदर्शवादी अवधारणा के रूप में नहीं देखा। उनके अनुसार, रामराज्य एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था थी जहां हर व्यक्ति को सम्मान, न्याय, और अधिकार मिलें, कोई भूखा न रहे, और कोई शोषित न हो। यह विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक और आवश्यक है जितना स्वतंत्रता संग्राम के समय था।


उन्होंने पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता और जल संरक्षण के क्षेत्र में परमार्थ निकेतन द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना की। रामनाथ कोविंद ने कहा कि गंगा एक्शन परिवार, ग्लोबल इंटरफेथ वॉश एलायंस जैसी पहलें वैश्विक स्तर पर प्रेरणा स्रोत हैं और पर्यावरण संरक्षण आज की सबसे बड़ी जरूरत है।


पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का परमार्थ निकेतन आश्रम आगमन न केवल एक सांस्कृतिक मिलन था, बल्कि यह भारतीय मूल्यों, गांधीवादी विचारों और आधुनिक सामाजिक चिंताओं के बीच संवाद का सशक्त मंच भी था।

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