इस शरद पूर्णिमा पर अमृत बरसाएगा चांद, पर भद्रा से रहें सावधान, जानिए सही समय और विधि
- ANH News
- 4 अक्टू॰
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शरद पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि औषधीय मान्यताओं के कारण भी विशेष महत्व रखता है। इस दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है और माना जाता है कि उसकी किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इसी वजह से इस रात खीर बनाकर चांदनी में रखने की परंपरा है। यह खीर औषधीय गुणों से युक्त मानी जाती है और इसके सेवन से मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य में लाभ होता है।
इस वर्ष शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर 2025, सोमवार को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर को दोपहर 12:23 बजे प्रारंभ होकर 7 अक्टूबर की सुबह 9:16 बजे तक रहेगी। चूंकि पूर्णिमा की रात्रि 6 अक्टूबर को पड़ेगी, इसलिए इसी दिन शरद पूर्णिमा का पर्व पूरे देश में मनाया जाएगा।
इस बार शरद पूर्णिमा पर भद्रा योग भी पड़ रहा है, जो शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, भद्रा काल में कोई भी मंगलकार्य या धार्मिक अनुष्ठान नहीं किया जाता क्योंकि इस समय किए गए कार्यों में बाधा आती है और उनका फल अनुकूल नहीं होता। 6 अक्टूबर को भद्रा दोपहर 12:23 से लेकर रात 10:53 तक रहेगी और इस दौरान चंद्रमा को अर्घ्य देना या खीर को चांदनी में रखना शुभ नहीं माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार, यदि भद्रा का समय रात्रि में हो तो उसमें खीर बाहर नहीं रखी जानी चाहिए। ऐसे में ज्योतिष विशेषज्ञों की सलाह है कि आप भद्रा समाप्त होने के बाद, यानी रात 10:53 बजे के बाद, खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखें। इस खीर को पूरी रात खुले आकाश के नीचे, ऐसी जगह रखें जहाँ चांद की किरणें सीधे उस पर पड़ें। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि खीर पूरी तरह ढकी न हो लेकिन उसमें किसी भी प्रकार का कीड़ा, धूल या जानवर न पहुँच सके। इसके लिए स्टील या नेट से ढँकने की व्यवस्था की जा सकती है।
यदि रात में जागकर खीर का सेवन संभव न हो, तो उसे सुबह उठकर खाया जा सकता है। मान्यता है कि रातभर चंद्रमा की किरणों में रहने के बाद यह खीर औषधीय गुणों से युक्त हो जाती है, जो पाचन, त्वचा रोग, मानसिक तनाव और शारीरिक ऊर्जा के लिए लाभकारी होती है।
इस दिन सुबह पूजा और व्रत का विशेष महत्व है। महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। पूजा के समय भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्रदेव का आह्वान किया जाता है।
इसके अतिरिक्त, शरद पूर्णिमा पर वृद्धि योग भी बन रहा है, जो दोपहर 1:14 बजे तक रहेगा। इस योग में किए गए कार्यों का प्रभाव दीर्घकालिक और फलदायी होता है। हालाँकि सुबह के समय राहुकाल (7:45 से 9:13) भी रहेगा, जो अशुभ माना जाता है, इसलिए पूजा या अन्य शुभ कार्यों से पहले मुहूर्त का ध्यान रखना आवश्यक है।
शरद पूर्णिमा न केवल खगोलीय घटना है, बल्कि आयुर्वेद और ज्योतिष के अनुसार एक विशेष ऊर्जा का दिन है, जब प्रकृति अपने औषधीय गुणों को खुले रूप में प्रकट करती है। ऐसे में इस पर्व पर संयम, श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत, पूजा और खीर सेवन करने से शरीर और मन दोनों को शुद्धता प्राप्त होती है।





