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महादेव ने ताड़कासुर का अंत करके यहाँ किया था विश्राम, क्या आप जानते है इस मंदिर का इतिहास?

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 27 फ़र॰
  • 2 मिनट पठन
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उत्तराखंड: रिखणीखाल मार्ग पर चखुलियाखाल से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित ताड़केश्वर धाम, एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जहां हर साल श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रहती है। विशेष रूप से माघ मास में महाशिवरात्रि के मौके पर आसपास के गांवों के साथ-साथ दूरदराज के क्षेत्रों से भी लोग यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं। समुद्र तल से लगभग छह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव की विश्राम स्थली के रूप में प्रसिद्ध है।


स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित विष गंगा और मधु गंगा उत्तर वाहिनी नदियों का उद्गम स्थल भी ताड़केश्वर धाम को माना जाता है। मंदिर के परिसर में मौजूद देवदार के चिमटानुमा और त्रिशूलनुमा पेड़ श्रद्धालुओं की आस्था को और प्रगाढ़ करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ताड़कासुर राक्षस का वध करने के बाद भगवान शिव ने यहां आकर विश्राम किया था।


एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव को सूर्य की तेज किरणों से बचाने के लिए माता पार्वती ने उनके चारों ओर देवदार के सात वृक्ष लगाए थे, जो आज भी ताड़केश्वर मंदिर परिसर में मौजूद हैं। इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि लगभग 1500 साल पहले इस स्थान पर एक सिद्ध संत पहुंचे थे, जिन्होंने यहां धर्म का प्रचार किया।


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ये संत गलत कार्य करने वालों को फटकार लगाते थे और उन्हें आर्थिक तथा शारीरिक दंड की चेतावनी भी देते थे। क्षेत्रीय लोग उन्हें शिवांश मानते थे और इस संत के प्रभाव के कारण इस स्थान का नाम ताड़केश्वर पड़ा।


मंदिर के मुख्य पुजारी, संदीप सकलानी के अनुसार, ताड़केश्वर मंदिर अत्यंत प्राचीन है और यहां देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। श्रद्धालु मंदिर की रमणीक छटा को देख मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। विशेष रूप से माघ और श्रावण माह में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। हालांकि, साल भर लोग इस पवित्र स्थान पर भगवान शिव के दर्शन और जलाभिषेक के लिए आते हैं।

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