विदेशी भी यहाँ बड़ी संख्या में पिंडदान के लिए पहुंचते, जाने कहाँ है ये मोक्षभूमि
- ANH News
- 14 सित॰
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अपडेट करने की तारीख: 15 सित॰

बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल घाट, अब न केवल भारतवर्ष के श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि पूरे विश्व के सनातन संस्कृति में आस्था रखने वालों के लिए एक पवित्र मोक्षभूमि बनता जा रहा है। अलकनंदा के पावन तट पर स्थित यह स्थल, जहाँ पितरों के तर्पण और पिंडदान की सदियों पुरानी परंपरा जीवित है, आज वैश्विक श्रद्धा का केंद्र बन चुका है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मकपाल में किया गया श्राद्ध अन्य किसी भी तीर्थ की तुलना में आठ गुना अधिक पुण्य प्रदान करता है। यही कारण है कि अब अमेरिका, रूस, कनाडा, फ्रांस और यूरोप के अनेक देशों से लोग हजारों किलोमीटर का सफर तय कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए इस दिव्य स्थल पर पहुंच रहे हैं।
ब्रह्मकपाल, बदरीनाथ मंदिर से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित है, जहां हर वर्ष श्राद्ध पक्ष के दौरान हजारों श्रद्धालु अपने पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान और प्रार्थना करते हैं। तीर्थ पुरोहित अरविंद हटवाल के अनुसार, बीते कुछ वर्षों में यहां विदेशी श्रद्धालुओं की उपस्थिति में लगातार वृद्धि देखी गई है। यह केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं रहा, बल्कि यह बताता है कि कैसे सनातन परंपराएं अब सीमाओं से परे जाकर वैश्विक श्रद्धा का रूप ले रही हैं।
एक विशेष प्रसंग 2001 के सितंबर माह का है, जब अमेरिका में 9/11 आतंकवादी हमला हुआ था। उस दुखद घटना के बाद 15 विदेशी नागरिकों ने एक साथ ब्रह्मकपाल में सामूहिक रूप से पिंडदान किया था। यह शायद पहली बार था जब इतने बड़े स्तर पर विदेशियों ने भारत के इस पवित्र स्थल पर तर्पण किया। इसके बाद से यह प्रवृत्ति लगातार बढ़ती रही और आज स्थिति यह है कि हर वर्ष अनेक विदेशी श्रद्धालु इस घाट पर आकर अपने पितरों के लिए वैदिक रीति से तर्पण और प्रार्थना करते हैं।
ब्रह्मकपाल की महत्ता केवल तीर्थाटन या पारंपरिक आस्थाओं तक सीमित नहीं है, इसका गहरा पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व भी है। बदरीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी आचार्य भुवन उनियाल बताते हैं कि यह वही स्थान है जहाँ भगवान शिव ने ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाई थी। कथा के अनुसार, जब शिवजी ने ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को अपने त्रिशूल से काटा, तो वह सिर त्रिशूल पर चिपक गया और शिवजी ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति के लिए पृथ्वी लोक में भटकते रहे। जब वे बदरीनाथ पहुंचे, तो त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर नीचे गिरा और यहीं उन्हें पाप से मोक्ष की प्राप्ति हुई। तभी से इस स्थान को "ब्रह्मकपाल" कहा जाने लगा।
यह स्थल न केवल श्राद्ध के लिए पवित्र माना जाता है, बल्कि ऐसी मान्यता है कि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो या जिन्हें जीवन में अशांति मिली हो, उनके लिए इस घाट पर किया गया तर्पण विशेष फलदायी होता है। तीर्थ पुरोहित विवेक सती, अजय सती और सुबोध हटवाल बताते हैं कि यहां की गई श्रद्धा पूर्ण प्रार्थना से आत्माओं को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है, यही विश्वास अब विदेशी श्रद्धालुओं को भी आकर्षित कर रहा है।
ब्रह्मकपाल घाट पर उमड़ती यह अंतरराष्ट्रीय श्रद्धा यह प्रमाणित करती है कि सनातन संस्कृति की जड़ें न केवल गहरी हैं, बल्कि विश्वव्यापी होती जा रही हैं। यह घाट आज एक सांस्कृतिक संगम, एक आध्यात्मिक सेतु बन गया है—जहाँ पितरों के लिए किया गया तर्पण केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि वैश्विक चेतना में बसे श्रद्धा और मोक्ष के प्रति अनुराग का प्रतीक बन चुका है।





