उत्तराखंड के स्कूलों में गूंजेगा गीता का ज्ञान, श्रीमद् भगवद् गीता और रामायण को बनाया पाठ्यक्रम का हिस्सा
- ANH News
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उत्तराखंड सरकार ने स्कूली शिक्षा को न केवल शैक्षणिक बल्कि नैतिक और मूल्यनिष्ठ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशानुसार अब प्रदेश के सभी सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में प्रतिदिन की प्रार्थना सभा के दौरान श्रीमद्भगवद् गीता के श्लोकों का वाचन और उनका अर्थ विद्यार्थियों को सुनाया जाएगा। यह प्रक्रिया 15 जुलाई 2025 से प्रदेशभर के विद्यालयों में औपचारिक रूप से प्रारंभ कर दी गई है।
इस नई पहल के अंतर्गत हर दिन एक श्लोक का उच्चारण प्रार्थना सभा में किया जाएगा, जिसके पश्चात उसका आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अर्थ और व्याख्या विद्यार्थियों को समझाई जाएगी। इसका उद्देश्य केवल धार्मिक ग्रंथों का पठन-पाठन नहीं, बल्कि छात्रों के अंदर चारित्रिक दृढ़ता, नैतिकता, नेतृत्व क्षमता, निर्णय लेने की बुद्धिमत्ता, भावनात्मक संतुलन और विज्ञान सम्मत सोच विकसित करना है।
माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि:
प्रत्येक विद्यालय में प्रतिदिन प्रार्थना सभा के दौरान कम से कम एक श्लोक अर्थ सहित सुनाया जाए।
सप्ताह में एक दिन एक मूल्य-आधारित श्लोक को ‘सप्ताह का श्लोक’ घोषित कर उसे विद्यालय के सूचना पट्ट पर अर्थ सहित प्रदर्शित किया जाए।
छात्रों को उस श्लोक का अभ्यास कराया जाए और सप्ताहांत में चर्चा और फीडबैक सत्र आयोजित किया जाए।
इसके साथ ही शिक्षकों को यह निर्देश दिए गए हैं कि वे समय-समय पर श्लोकों की गूढ़ व्याख्या करें तथा यह स्पष्ट करें कि श्रीमद्भगवद् गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि उसमें अंतर्निहित उपदेश सांख्य दर्शन, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, नैतिक विज्ञान एवं व्यवहार शास्त्र जैसे विविध अनुशासनों पर आधारित हैं। गीता की शिक्षाएं किसी एक धर्म विशेष तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए उपयोगी और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से प्रासंगिक हैं।
शिक्षा विभाग का उद्देश्य यह भी है कि विद्यार्थियों द्वारा श्लोकों का अध्ययन केवल पाठ्यक्रम की एक औपचारिकता न रह जाए, बल्कि वे इन मूल्यों को अपने जीवन में आत्मसात करें। इसके लिए विद्यालय स्तर पर यह सुनिश्चित किया जाएगा कि छात्रों का सर्वांगीण विकास – जिसमें आत्मनियंत्रण, संतुलित जीवन दृष्टिकोण, वैचारिक स्पष्टता और सकारात्मक व्यक्तित्व निर्माण – भी गीता के शिक्षण से हो।
इस पहल को राज्य की शैक्षणिक नीति और पाठ्यचर्या की संरचना में भी विधिवत रूप से सम्मिलित कर लिया गया है, जिसके अंतर्गत श्रीमद्भगवद् गीता एवं रामायण को नैतिक शिक्षा एवं मूल्य-आधारित शिक्षण के स्तंभ के रूप में मान्यता दी गई है।
यह प्रयास न केवल उत्तराखंड राज्य के शैक्षणिक परिवेश को समृद्ध करेगा, बल्कि एक उत्कृष्ट, मूल्यनिष्ठ एवं संवेदनशील नागरिक समाज के निर्माण की दिशा में भी एक सशक्त कदम साबित होगा।