बर्फ की चादर में लिपटे हेमकुंट साहिब, आज बंद होंगे कपाट
- ANH News
- 10 अक्टू॰
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बर्फबारी के बाद हेमकुंड साहिब की वादियों में एक बार फिर अद्भुत दृश्य देखने को मिला। ताज़ा बर्फ की चादर ओढ़े हुए हिमालय की गोद में स्थित यह पावन स्थल अब और भी अधिक रमणीय दिखाई दे रहा है। मौसम खुलने के बाद आसमान साफ हुआ और वातावरण में एक अलग ही सुकून और शांति का अनुभव हो रहा है। कल हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा और पास ही स्थित लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट विधिपूर्वक बंद किए जाएंगे, जिसके साथ ही यह क्षेत्र भी शीतकालीन विश्राम में चला जाएगा।
इसी के साथ गंगोत्री नेशनल पार्क प्रशासन ने गोमुख, भोजबासा और तपोवन ट्रेकिंग रूट पर अस्थायी रोक लगाने का निर्णय लिया है। बीते दो दिनों में हुई लगातार बर्फबारी के कारण इन ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ट्रेकिंग करना जोखिमपूर्ण हो गया है। हालांकि बुधवार सुबह तक इन सभी ट्रेकिंग रूट्स पर गए ट्रेकर्स सकुशल गंगोत्री लौट आए। इस दौरान ट्रेकर्स ने बर्फ की चादर से ढके ट्रेक्स पर चलने का रोमांच भी पूरी तरह महसूस किया।

चारधाम और पंचकेदार की शीतकालीन यात्रा अब समापन की ओर है। विजयदशमी और भैयादूज जैसे पावन पर्वों के अवसर पर पंचांग गणना के आधार पर इन पवित्र धामों के कपाट बंद करने की तिथियाँ तय की जा चुकी हैं। इस वर्ष की आधिकारिक यात्रा का समापन 25 नवंबर को बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के साथ होगा। अन्य धामों के कपाट इससे पहले ही बंद किए जा रहे हैं।
यमुनोत्री धाम के कपाट 23 अक्तूबर को दोपहर 12:30 बजे भैया दूज के शुभ अवसर पर बंद किए जाएंगे। इसके बाद छह महीने तक माँ यमुना की पूजा खरसाली गांव स्थित उनके शीतकालीन प्रवास स्थल पर की जाएगी। इस अवसर पर परंपरा के अनुसार, शनि महाराज की डोली, जो माँ यमुना के भाई माने जाते हैं, उन्हें लेने के लिए पहले धाम पहुंचेगी और फिर माँ यमुना की डोली को अपने साथ लेकर खरसाली गांव की ओर प्रस्थान करेगी।

गंगोत्री धाम के कपाट 22 अक्तूबर को अन्नकूट पर्व के दिन सुबह 11:36 बजे बंद होंगे। इसके उपरांत माँ गंगा के दर्शन उनके शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा गांव में स्थित मंदिर में किए जा सकेंगे।
बदरीनाथ धाम के कपाट 25 नवंबर को दोपहर 2:56 बजे शीतकाल के लिए बंद होंगे। इस अवसर से पूर्व 21 नवंबर से पंच पूजाएं आरंभ होंगी। विजयदशमी के पावन पर्व पर बदरीनाथ मंदिर परिसर में कपाट बंद होने की घोषणा की गई। धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, वेदपाठी रविंद्र भट्ट और अमित बंदोलिया ने पंचांग गणना कर कपाट बंद होने की तिथि सुनिश्चित की, जिसे मंदिर के मुख्य पुजारी रावल अमरनाथ नंबूदरी ने औपचारिक रूप से घोषित किया।
शीतकाल के आगमन के साथ ही श्रद्धालुओं की यात्रा का यह पर्व भी धीरे-धीरे विश्राम की ओर बढ़ रहा है, लेकिन इससे पहले भक्तों की आस्था और प्रकृति के अद्भुत मेल का यह अंतिम चरण, उत्तराखंड की पावन धरती पर एक बार फिर अध्यात्म और भक्ति से भरपूर वातावरण बना रहा है।





