Rishikesh: गंगा तट पर हुआ दिव्य साधना संगम, पूज्य स्वामी चिदानंद ने किया शुभारम्भ
- ANH News
- 27 अक्टू॰
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ऋषिकेश, 26 अक्टूबर। गंगा तट पर परमार्थ निकेतन में अध्यात्म और साधना का एक अद्वितीय संगम देखने को मिला। श्री स्वामिनारायण गुरुकुल विश्वविद्यालय, अहमदाबाद द्वारा आयोजित सत्संग साधना शिविर का शुभारम्भ पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज के पावन सान्निध्य में संपन्न हुआ।
इस दिव्य अवसर पर पूज्य माधवप्रिय स्वामी जी महाराज, पूज्य बाल स्वामी जी महाराज तथा स्वामिनारायण परंपरा के अन्य पूज्य संतों के मार्गदर्शन में साधक आत्मजागरण की दिशा में अग्रसर हुए। शिविर में उपस्थित भक्तों ने पूज्य माधवप्रिय स्वामी जी महाराज के जीवन की 75 वर्षों की दिव्य यात्रा का उत्सव भी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया, साथ ही उनके 76वें जन्मोत्सव को विशेष रूप से समारोहबद्ध किया गया।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने अपने प्रेरक उद्बोधन में कहा कि जीवन में सब कुछ व्यवस्थित किया जा सकता है, घर, काम, परिवार, लेकिन यदि मन अपसेट है तो सब व्यर्थ हो जाता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि साधना वह माध्यम है जो हमें भीतर से संतुलित करती है, हमारे विचार, व्यवहार और चिंतन को उन्नत करती है। उनका कहना था कि जब मन साधना में रमण करता है, तब जीवन के उतार-चढ़ाव हमें विचलित नहीं कर पाते। साथ ही उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि साधना केवल व्यक्तिगत उन्नति के लिए नहीं, बल्कि समाज के कल्याण और व्यापक मानवता की भलाई के लिए भी होनी चाहिए।
पूज्य माधवप्रिय स्वामी जी महाराज ने साधना को मौन बैठने तक सीमित न समझने की बात कही और बताया कि “साधना का अर्थ अपने विचारों को दिव्यता की दिशा में प्रवाहित करना है। यह आत्मा और चेतना को ऊँचाई प्रदान करने का मार्ग है।” पूज्य बाल स्वामी जी महाराज ने विशेष रूप से युवाओं से आह्वान किया कि असली स्वतंत्रता भीतर की निर्भरता से मुक्ति में है, और साधना के माध्यम से मन को नियंत्रित करना ही सच्ची स्वतंत्रता है।
गंगा तट पर चल रहे इस दिव्य साधना शिविर में प्रतिदिन प्रार्थना, ध्यान, योग, गंगा आरती, भजन-संकीर्तन और प्रेरक प्रवचनों के माध्यम से साधक अपने भीतर के दिव्य स्वर को सुनने और अनुभव करने का प्रयास कर रहे हैं। मां गंगा की लहरें साधना के सुर में झूमती दिखाई दीं, और साधकों के हृदय में शांति, ऊर्जा और आध्यात्मिक प्रकाश का संचार हो रहा है।
इस प्रकार यह शिविर न केवल अध्यात्मिक अनुशासन और साधना का केंद्र बना, बल्कि भक्तों के जीवन में आंतरिक शांति और संतुलन लाने का अद्भुत अवसर भी प्रदान करता रहा।





