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श्राद्ध पक्ष में इन सात महादानों का महत्व अपार, पितरों की कृपा से होता है जीवन का उद्धार

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 12 सित॰
  • 3 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 13 सित॰

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पितृपक्ष 2025 की शुरुआत 7 सितंबर से हो चुकी है और यह 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के इन 15 दिनों को पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए अत्यंत पवित्र और फलदायी माना जाता है। इसे श्राद्ध पक्ष, महालय पक्ष या कर्म पक्ष के नाम से भी जाना जाता है।


पितृ पक्ष का आध्यात्मिक महत्व

हिन्दू धर्म में यह विश्वास है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान को ग्रहण करते हैं। यह समय आत्मा की मुक्ति के लिए आवश्यक पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म को विधिपूर्वक करने का होता है। पितृ तृप्त होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, जिससे घर में सुख-शांति, समृद्धि और संतुलन बना रहता है।


पितृपक्ष में क्यों करें दान?

पितृ पक्ष में दान का विशेष महत्व होता है। यह माना जाता है कि इस अवधि में किया गया दान सहस्रगुणा फल देने वाला होता है। पितरों के नाम पर किया गया दान उन्हें आत्मिक संतोष देता है और वंशजों को भी आध्यात्मिक लाभ मिलता है। खासकर निर्धन, ब्राह्मण, गौ, गायत्री मंत्र में दीक्षित व्यक्ति या किसी जरूरतमंद को किया गया दान अत्यंत पुण्यकारी होता है।


पितृपक्ष में किए जाने वाले 7 महादान (सप्त महादान)

पितृपक्ष में सात विशेष प्रकार के दानों को महादान की संज्ञा दी गई है। यह दान न केवल पूर्वजों को तृप्त करते हैं, बल्कि दाता के जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं।


1. गौदान (गाय का दान)

यह सबसे श्रेष्ठ और मोक्षदायक दान माना गया है।

इसे प्रत्यक्ष रूप में गाय दान करके अथवा गाय के नाम का संकल्प लेकर भी किया जा सकता है।

इससे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और पितरों की कृपा प्राप्त होती है।


2. भूमिदान (भूमि अथवा मिट्टी का दान)

अगर भूमि दान संभव न हो, तो मिट्टी का दान भी समान फलदायी होता है।

इससे आर्थिक समृद्धि और स्थायी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।


3. स्वर्णदान (सोने का दान)

स्वर्ण दान करने से ग्रह-दोषों, नक्षत्र बाधाओं और ऋण से मुक्ति मिलती है।

सोना उपलब्ध न हो तो उसकी जगह श्रद्धा से दक्षिणा दी जा सकती है।


4. घृतदान (गाय के घी का दान)

शुद्ध गाय का घी पात्र सहित दान करना चाहिए।

इससे पारिवारिक जीवन में प्रेम, संतुलन और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।


5. वस्त्रदान (कपड़ों का दान)

वस्त्रदान में नए या अच्छे वस्त्र तथा उपवस्त्र (अंगवस्त्र आदि) शामिल होते हैं।

फटे-पुराने वस्त्र नहीं देने चाहिए।

इससे रोग, शारीरिक कष्ट और मानसिक तनाव दूर होते हैं।


6. रजतदान (चांदी का दान)

चांदी परिवार की दृढ़ता और वंश वृद्धि का प्रतीक है।

यदि चांदी न हो तो सफेद धातु (जैसे स्टील या एल्युमीनियम) की वस्तुएं भी दान की जा सकती हैं।


7. लवणदान (नमक का दान)

नमक के बिना कोई भी भोजन अधूरा होता है और इसी तरह लवण दान के बिना पितृपक्ष का दान भी अधूरा माना जाता है।

यह दान प्रेतबाधा, मानसिक व्याधियों और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है।


पितृपक्ष में कौन-कौन से दान करें?

इन विशेष महादानों के अतिरिक्त, पितृ पक्ष में निम्नलिखित वस्तुओं का भी दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है:

तिल, चावल, गुड़, घी, अनाज

जल कलश, फल, अन्नपूर्णा थाली

जूते, छाता, कुशा, आसन

कंबल, बर्तन, दीपक, त्रिपिंडी


पितृ पक्ष श्रद्धा, स्मरण और संकल्प का पर्व है। यह हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। इन 15 दिनों में किया गया श्राद्ध, तर्पण और दान हमारे जीवन को शुद्ध करता है, पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करता है और आने वाली पीढ़ियों को आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्रदान करता है।

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