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Uttarakhand: धामी सरकार अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए ला रही नया कानून, कैबिनेट की मंजूरी

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 18 अग॰
  • 3 मिनट पठन
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उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने एक ऐतिहासिक और दूरगामी निर्णय लेते हुए आगामी विधानसभा सत्र में ‘उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान विधेयक, 2025’ को पेश करने का फैसला किया है। यह विधेयक 19 अगस्त 2025 से भराड़ीसैंण में शुरू हो रहे मानसून सत्र में सदन के पटल पर रखा जाएगा।


अब तक केवल मुस्लिम समुदाय को मिलती थी मान्यता-

अब तक उत्तराखंड राज्य में "अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान" का दर्जा केवल मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित संस्थानों को ही दिया जाता था। लेकिन प्रस्तावित विधेयक के तहत इस अधिकार का विस्तार करते हुए अन्य अल्पसंख्यक समुदायों — सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी — को भी इस दायरे में शामिल किया जाएगा। इससे इन समुदायों को न केवल संस्थानों की मान्यता मिलेगी, बल्कि वे अपनी भाषाई और सांस्कृतिक विरासत को शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ा सकेंगे।


गुरमुखी और पाली जैसी भाषाओं के अध्ययन का रास्ता साफ-

विधेयक के लागू होने के बाद मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों में गुरमुखी, पाली जैसी पारंपरिक भाषाओं का अध्ययन भी संभव होगा, जिससे विद्यार्थियों को विविध सांस्कृतिक और भाषाई ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।


मौजूदा कानून होंगे समाप्त-

सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, इस नए कानून के लागू होते ही उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 तथा उत्तराखंड गैर-सरकारी अरबी एवं फारसी मदरसा मान्यता नियमावली, 2019 को 1 जुलाई 2026 से समाप्त कर दिया जाएगा। इसका उद्देश्य है समान रूप से सभी अल्पसंख्यकों को एकीकृत और पारदर्शी व्यवस्था के तहत शैक्षिक संस्थान स्थापित करने की स्वतंत्रता देना।


विधेयक की प्रमुख विशेषताएं:

अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन-

विधेयक के अंतर्गत "उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण" का गठन किया जाएगा, जो राज्य में मुस्लिम, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदायों द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्थानों को मान्यता देने और उनकी निगरानी करने का कार्य करेगा।


संस्थानों की स्वतंत्रता व संरक्षण-

यह प्राधिकरण सुनिश्चित करेगा कि इन संस्थानों के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप न हो, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता से कोई समझौता न किया जाए। साथ ही, संस्थानों के अधिकारों की रक्षा की जाएगी और उन्हें आवश्यक प्रशासनिक एवं शैक्षिक मार्गदर्शन प्रदान किया जाएगा।


कानूनी पंजीकरण अनिवार्य-

सभी संस्थानों को सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, ट्रस्ट एक्ट या कंपनी एक्ट के तहत पंजीकृत होना अनिवार्य होगा। इनके पास स्वामित्व वाली भूमि, बैंक खाता और संपत्ति उनके नाम पर होना आवश्यक होगा।


पारदर्शिता और जवाबदेही-

यदि किसी संस्थान में वित्तीय अनियमितता, पारदर्शिता की कमी, या धार्मिक-सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियाँ पाई जाती हैं, तो उनकी मान्यता रद्द की जा सकेगी। साथ ही, शिक्षा का स्तर उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप होना आवश्यक होगा।


परीक्षाओं की निष्पक्षता-

प्राधिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि संस्थानों में परीक्षाएँ निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से आयोजित हों, जिससे विद्यार्थियों को समान अवसर और गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्राप्त हो सके।


देश में अपनी तरह का पहला कानून-

यह विधेयक भारत का पहला ऐसा कानून होगा जो विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षिक संस्थानों को मान्यता देने की प्रक्रिया को एकीकृत, पारदर्शी और गुणवत्ता-आधारित बनाएगा। इसके ज़रिए राज्य सरकार को इन संस्थानों की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखने और आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने का कानूनी अधिकार मिलेगा।


यह विधेयक उत्तराखंड राज्य में सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक विविधता और समावेशी शिक्षा प्रणाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे न केवल अल्पसंख्यक समुदायों को सशक्त किया जाएगा, बल्कि राज्य में गुणवत्तापूर्ण और समान शिक्षा के लक्ष्यों को भी साकार किया जा सकेगा।

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