अब नकल माफियाओं की खैर नहीं, धामी सरकार ने बनाया सख्त कानून, CBI जांच का आदेश
- ANH News
- 1 अक्टू॰
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उत्तराखंड में प्रतियोगी परीक्षाओं में लगातार सामने आ रहे पेपर लीक प्रकरणों ने जहां युवाओं की उम्मीदों को आघात पहुंचाया, वहीं राज्य सरकार के लिए भी यह एक बड़ी प्रशासनिक और नैतिक चुनौती बनकर उभरा। इन घटनाओं के बाद राज्य के इतिहास में पहली बार किसी सरकार ने इतनी तेजी और कठोरता से कार्रवाई करते हुए नकल और परीक्षा घोटालों पर अंकुश लगाने के लिए सबसे सख्त कानून बनाया। यह कानून मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पहल पर अस्तित्व में आया और इसे उनके ऐतिहासिक निर्णयों में एक अहम कदम माना गया।
मुख्यमंत्री धामी स्वयं इस अध्यादेश- उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम व निवारण के उपाय) अध्यादेश, 2023- को राज्य की परीक्षाओं को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने की दिशा में मील का पत्थर बता चुके हैं। पार्टी नेतृत्व और सरकार दोनों ने इसे नकल माफिया पर सीधा प्रहार बताते हुए इसका भरपूर समर्थन किया। कानून के प्रभाव में आने के बाद 100 से अधिक नकल माफियाओं को जेल भेजा गया, जिसने प्रदेश भर में एक सख्त संदेश दिया कि अब गड़बड़ी करने वालों के लिए कोई जगह नहीं।
हालांकि, हाल ही में हुए एक परीक्षा के दौरान जब हरिद्वार के एक परीक्षा केंद्र से प्रश्नपत्र के तीन पन्ने सोशल मीडिया पर वायरल हुए, तो इस पूरे कानून की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता पर सवाल खड़े हो गए। यह घटना सरकार की गंभीरता पर नहीं, बल्कि व्यवस्था की अंदरूनी खामियों पर उंगली उठाने वाली थी, जिसने नकल विरोधी कानून की साख को चुनौती दी। यह परिस्थिति मुख्यमंत्री के लिए न सिर्फ एक राजनीतिक चुनौती, बल्कि उनकी नीति की आंतरिक परीक्षा बन गई।
घटना के बाद सरकार ने तेजी से कदम उठाते हुए हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में एसआईटी जांच की घोषणा की। लेकिन जैसे ही सेवानिवृत्त जज बीएस वर्मा के संबंध भाजपा नेताओं से जोड़कर दिखाए जाने लगे, आंदोलन कर रहे युवाओं का विरोध और तेज हो गया। सरकार को यह अहसास हुआ कि अब केवल प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, बल्कि जनविश्वास की पुनर्स्थापना ज़रूरी है।
इसलिए अगली ही सुबह सरकार ने तुरंत निर्णय लेते हुए हाईकोर्ट के रिटायर्ड न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की अध्यक्षता में नई न्यायिक जांच आयोग का गठन कर दिया। इसके साथ ही सरकार ने एक और निर्णायक कदम उठाया- प्रकरण की सीबीआई जांच का एलान, जिससे यह संदेश जाए कि सरकार इस मुद्दे पर किसी भी प्रकार की ढिलाई या पक्षपात नहीं बरतने वाली।
इस पूरे घटनाक्रम ने जहां एक ओर शासन की तत्परता और संवेदनशीलता को उजागर किया, वहीं यह भी स्पष्ट किया कि सख्त कानून बनने के बावजूद व्यवस्था के हर स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखना कितना आवश्यक है। अब इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में मुख्यमंत्री धामी की अगुवाई वाली सरकार को न सिर्फ अपने कानून की साख को बचाना है, बल्कि युवाओं का टूटा भरोसा भी दोबारा जीतना है।





