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बंद कपाट में कौन चढ़ाता है शिवलिंग को जल और पुष्प, जानें इस मंदिर का अनसुलझा रहस्य, जानिए

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 21 जुल॰
  • 2 मिनट पठन
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श्रावण मास की पवित्र शुरुआत आज से हो चुकी है और देशभर में भोलेनाथ की आराधना की गूंज सुनाई दे रही है। इसी बीच उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित बनीपारा गांव का एक प्राचीन और रहस्यमयी शिव मंदिर—बाणेश्वर महादेव मंदिर—एक बार फिर श्रद्धालुओं की आस्था और कौतूहल का केंद्र बन गया है।


सुबह मंदिर खुलने से पहले ही होती है पूजा

इस मंदिर को लेकर वर्षों से एक गूढ़ रहस्य जुड़ा हुआ है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जब मंदिर के पट सुबह ब्रह्ममुहूर्त में खोले जाते हैं, तो शिवलिंग पर पूजा पहले से ही सम्पन्न मिलती है। न तो कोई पुजारी दिखता है, न कोई भक्त—फिर भी फूल, जल, बेलपत्र, चंदन और दीपक शिवलिंग पर सजे होते हैं।


सतयुग से जुड़ी है परंपरा

कथाओं के अनुसार, यह वही स्थान है जहां सतयुग में असुरराज बाणासुर की पुत्री ऊषा सबसे पहले भगवान शिव की पूजा करती थी। तभी से यह परंपरा अनवरत जारी है। स्थानीय ग्रामीणों का मानना है कि आज भी ऊषा और स्वयं बाणासुर रात के समय मंदिर में आकर भगवान शिव की आराधना करते हैं।


15 साल पुराना एक वाकया: जब आस्था में बदल गया संशय

करीब 15 साल पहले सावन माह के दौरान मेले की व्यवस्था देखने आए एक मुस्लिम दरोगा इस बात को मानने को तैयार नहीं थे कि मंदिर खुलने से पहले पूजा होती है। उन्होंने शाम को खुद मंदिर की सफाई करवाई, ताले लगवाए और सुबह अपने सामने ताले खुलवाए। लेकिन जब मंदिर के पट खुले, तो शिवलिंग पहले से ही पूजित मिला। इसके बाद उनकी भी आस्था इस मंदिर से जुड़ गई और उन्होंने स्वयं शिवलिंग पर जल अर्पित कर भगवान शिव का आशीर्वाद लिया।


मनोकामनाओं के पूर्ण होने का स्थल

स्थानीय लोगों का दृढ़ विश्वास है कि श्रावण मास के सोमवार को उपवास रखने के बाद इस मंदिर में जलाभिषेक करने से मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। यही कारण है कि सावन में यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और यहां मेला भी लगता है। मेले की व्यवस्था के लिए प्रशासन अस्थायी चौकी की व्यवस्था करता है।


कांवड़ियों की भी विशेष आस्था

कांवड़ लेकर हरिद्वार से गंगाजल लाने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी यह मंदिर विशेष महत्व रखता है। कहा जाता है कि जब तक वे इस मंदिर में जल नहीं चढ़ा लेते, उनकी कांवड़ यात्रा अधूरी मानी जाती है।


इतिहास के पन्नों से: मंदिर को मिटाने की कोशिशें

ऐसी भी मान्यता है कि मुगल शासनकाल में इस मंदिर को ध्वस्त करने की कई कोशिशें की गईं, लेकिन हर बार यह प्रयास असफल रहा। लोगों का मानना है कि स्वयं भगवान शिव इस स्थान की रक्षा करते हैं।

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