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भैया दूज पर मां यमुना का शीतकालीन प्रवास, यमुनोत्री धाम के कपाट विधि-विधान से होंगे बंद

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 3 अक्टू॰
  • 2 मिनट पठन
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उत्तराखंड स्थित चारधामों में से एक, पवित्र यमुनोत्री धाम के कपाट इस वर्ष भैया दूज के पावन अवसर पर 23 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 30 मिनट पर विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। मां यमुना की शीतकालीन विदाई के लिए परंपरा अनुसार इस तिथि का निर्धारण दशहरा पर्व के दिन खरसाली गांव स्थित यमुना मंदिर में आयोजित बैठक में किया गया, जिसमें यमुनोत्री मंदिर समिति सहित संबंधित पुजारी वर्ग व क्षेत्रीय जनों की उपस्थिति रही।


यमुनोत्री मंदिर समिति के प्रवक्ता पुरुषोत्तम उनियाल के अनुसार, धन लग्न, विशाखा नक्षत्र, आयुष्मान योग और अमृत वेला में शुभ मुहूर्त निकलने के पश्चात कपाट बंद करने की तिथि तय की गई है। उसी दिन दोपहर को, वैदिक मंत्रोच्चारण और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मां यमुना की विग्रह प्रतिमा को शीतकालीन प्रवास हेतु उनके मायके खरसाली गांव लाया जाएगा।


कपाट बंद होने से पूर्व पारंपरिक रूप से मां यमुना के भाई शनिदेव (सोमेश्वर महाराज) की डोली यमुनोत्री धाम पहुंचती है, जो अपनी बहन को शीतकालीन प्रवास के लिए खरसाली गांव ले जाती है। यह दृश्य न केवल धार्मिक भावनाओं से परिपूर्ण होता है, बल्कि भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक भी बन चुका है, जिसमें स्थानीय निवासी और तीर्थयात्री भावविभोर होकर सहभागी बनते हैं।


अब आने वाले छह महीनों तक — जब यमुनोत्री धाम बर्फ से ढका रहेगा और वहां पहुंचना कठिन होगा — मां यमुना की पूजा, आराधना और दर्शन खरसाली गांव स्थित उनके शीतकालीन मंदिर में ही संपन्न होंगे। यह मंदिर सर्दियों के दौरान स्थानीय श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों के लिए आध्यात्मिक केंद्र बना रहेगा।


यमुनोत्री धाम के कपाट हर वर्ष दिवाली और भैया दूज के बीच बंद किए जाते हैं, जब ऊँचाई वाले इलाकों में भारी बर्फबारी और अत्यधिक ठंड की शुरुआत होती है। शीतकाल के बाद आमतौर पर अप्रैल—मई में अक्षय तृतीया या उससे पूर्व नए मुहूर्त में कपाट दोबारा खोले जाते हैं।


मां यमुना के शीतकालीन प्रवास की यह परंपरा न केवल आध्यात्मिक महत्व रखती है, बल्कि स्थानीय संस्कृति, लोकविश्वास और परंपरा की जीवंतता का भी प्रमाण है। खरसाली गांव में इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना, भंडारे और धार्मिक आयोजनों की भी परंपरा रही है, जो इस छोटे से पहाड़ी गांव को उस अवधि में आस्था का प्रमुख केंद्र बना देती है।

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