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शीतकाल के लिए कब होंगे यमुनोत्री धाम के कपाट, आ गई तारीख...जानिए

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 1 अक्टू॰
  • 2 मिनट पठन
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उत्तराखंड स्थित पवित्र चारधामों में से दो प्रमुख धाम- गंगोत्री और यमुनोत्री की शीतकालीन अवकाश के लिए कपाट परंपरानुसार अक्टूबर के अंत में बंद कर दिए जाएंगे। यह निर्णय नवरात्रि के शुभ अवसर पर तीर्थ पुरोहितों द्वारा निकाले गए विशेष मुहूर्तों के अनुसार लिया गया है। कपाट बंद होने की यह प्रक्रिया, न केवल धार्मिक परंपरा है, बल्कि तीर्थ यात्रा के वार्षिक चक्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।


गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश सेमवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि गंगोत्री धाम के कपाट 22 अक्तूबर को अन्नकूट पर्व के दिन सुबह 11:36 बजे विधिपूर्वक बंद किए जाएंगे। हर वर्ष की भांति इस बार भी नवरात्र की अष्टमी तिथि को कपाट बंद करने का शुभ मुहूर्त निकाला गया। गंगोत्री के कपाट बंद होने के साथ ही मां गंगा की मूर्ति को सम्मानपूर्वक मुखबा गांव लाया जाएगा, जहां स्थित शीतकालीन गंगा मंदिर में आगामी छह महीनों तक उनकी पूजा-अर्चना की जाएगी। श्रद्धालु इस दौरान वहीं दर्शन कर सकेंगे।


वहीं, यमुनोत्री धाम के कपाट 23 अक्तूबर को भैयादूज के पावन अवसर पर बंद किए जाएंगे। यमुनोत्री की मूर्तियों को परंपरागत ढंग से खरसाली गांव लाया जाएगा, जहां शीतकालीन अवधि में मां यमुना की पूजा होती है। सेमवाल ने बताया कि यमुनोत्री धाम के कपाट बंद करने का मुहूर्त नवरात्र की नवमी को तय किया जाएगा, जो हर साल की धार्मिक परंपरा का हिस्सा है।

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गौरतलब है कि हर वर्ष अक्तूबर-नवंबर के बीच, हिमालय क्षेत्र में बढ़ती ठंड और संभावित बर्फबारी को ध्यान में रखते हुए चारधामों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद ये धाम लगभग छह महीने तक श्रद्धालुओं के लिए बंद रहते हैं। शीतकाल के दौरान जब पूरा क्षेत्र बर्फ की चादर में ढक जाता है, तब देवी-देवताओं की मूर्तियों को समतल गांवों में स्थित उनके शीतकालीन मंदिरों में ले जाकर पूजित किया जाता है।


आगामी वर्ष की यात्रा का शुभारंभ पारंपरिक रूप से वसंत ऋतु में अक्षय तृतीया के दिन होता है, जब कपाट फिर से विधिवत खोले जाते हैं। तब एक बार फिर उत्तराखंड के ये दिव्य धाम लाखों श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति के केंद्र बन जाते हैं।


इस प्रकार गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की यह वार्षिक धार्मिक परंपरा न केवल मौसम के अनुरूप व्यावहारिक व्यवस्था है, बल्कि उसमें रची-बसी लोक आस्था, परंपरा, और भावनात्मक जुड़ाव भी गहराई से दिखाई देता है।

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