प्राकृतिक आपदाओं ने कुमाऊं भर के जंगलों में मचाई भारी तबाही, बेजुबानों की छीनी सांसें
- ANH News
- 18 सित॰
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अपडेट करने की तारीख: 19 सित॰

उत्तराखंड में हाल ही में हुई भारी बारिश और आपदा का असर केवल मानव बस्तियों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि राज्य के घने जंगलों और वहां वास करने वाले बेजुबान वन्यजीव भी इसकी चपेट में आ गए। आसमान से बरसी आफत ने जंगलों में ऐसा मातम पसरा दिया है, जिससे न केवल जैव विविधता को गहरा आघात पहुंचा है, बल्कि पर्यावरण संतुलन पर भी चिंता के बादल मंडराने लगे हैं।
तेज बारिश, उफनती नदियां और नाले जंगलों के भीतर जीवन जी रहे वन्य प्राणियों के लिए जानलेवा बन गए। बाघ, तेंदुए, हाथी और हिरण जैसे बड़े वन्यजीव तक इन हालातों के सामने बेबस दिखे। जंगलों में बहते पानी और भूस्खलन जैसी स्थितियों ने वन्यजीवों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। ऐसी घटनाएं पहले भी सामने आती रही हैं, जब बरसात के दौरान कुछ जानवरों की मौत हुई हो, लेकिन इस बार की स्थिति कहीं अधिक गंभीर और चिंताजनक है।
चार सितंबर को बाजपुर के लेवड़ा नदी में एक तेंदुआ घायल अवस्था में पुल के नीचे पाया गया। उसके शरीर पर गहरी चोट के निशान थे, जिससे यह आशंका जताई गई कि वह बाढ़ के तेज बहाव में बह गया था। इसी तरह छह सितंबर को कोटद्वार के पास मालन नदी में एक हाथी का बच्चा बह गया, जो झुंड से अलग हो गया था। हालांकि वनकर्मियों ने उसे समय रहते रेस्क्यू कर लिया और उसकी जान बच गई।
नौ सितंबर को चंपावत जिले के टनकपुर में एक बरसाती नाले में तेंदुए का शव मिला। प्रारंभिक जांच में यह माना जा रहा है कि वह बहने के कारण मारा गया, लेकिन इसकी पुष्टि रिपोर्ट आने के बाद ही होगी। वहीं आठ सितंबर को कालाढूंगी के चकलुआ बीट क्षेत्र में एक सात वर्षीय बाघ का शव नाले में बरामद हुआ। बाघ के शरीर पर बाहरी चोटों के संकेत नहीं मिले, जिससे यह आशंका है कि वह बहाव में बह गया या फिर घायल अवस्था में आपदा का सामना नहीं कर सका।
कोसी नदी से भी ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं, जिनमें बाढ़ के बीच फंसे हिरण और हाथियों को देखा गया। तीन सितंबर को नदी के एक टीले पर पांच हिरण फंस गए थे। जबकि चार सितंबर को रामनगर के मोहान क्षेत्र में नदी में बहते दो हाथी किसी तरह से सुरक्षित निकाले गए।
प्राकृतिक आपदाएं विशेष रूप से सरीसृपों और घायल या वृद्ध वन्यजीवों के लिए अधिक खतरनाक साबित होती हैं। कमजोर शरीर और सीमित प्रतिक्रिया क्षमता के चलते वे तेजी से बदलते मौसम और परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाते, और बाढ़ जैसे हालातों में बह जाते हैं।
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर दीप रजवार ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि बाघ, तेंदुए और अन्य प्राणियों पर आई इस प्राकृतिक आपदा की ओर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया है। उनका मानना है कि जंगलों में जीवन जी रहे जीवों के लिए बचाव और राहत के प्रयास उतने ही ज़रूरी हैं, जितने इंसानी आबादी के लिए।
हालांकि, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) रंजन कुमार मिश्रा का कहना है कि अब तक कोई ऐसा आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है जिसमें यह स्पष्ट रूप से दर्ज हो कि इन वन्यजीवों की मौत दैवीय आपदा से हुई है। मानसून के दौरान वन्यजीवों के वासस्थल अवश्य प्रभावित होते हैं और हताहत होने की आशंका बनी रहती है, लेकिन हर घटना का वैज्ञानिक मूल्यांकन जरूरी होता है।
बहरहाल, उत्तराखंड की यह आपदा यह सोचने पर मजबूर करती है कि जब इंसानों की जिंदगी पर संकट आता है, तो पूरे प्रशासनिक और सामाजिक ढांचे की नजर उस ओर जाती है, लेकिन जंगलों में रहने वाले उन बेजुबानों की ओर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता जो इंसानों से पहले इस धरती के निवासी रहे हैं। यह वक्त है कि वन्यजीव संरक्षण को आपदा प्रबंधन की नीतियों में प्राथमिकता दी जाए, ताकि अगली बार कोई बाघ, तेंदुआ या हाथी सिर्फ इसलिए न मरे कि इंसानों की तरह उसे बचाने वाला कोई नहीं था।





