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डिजिटल अरेस्ट ठगी मामले में बैंकों-टेलीकॉम कंपनियों को हाईकोर्ट का नोटिस, तीन सप्ताह में दे जवाब

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 5 सित॰
  • 3 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 6 सित॰

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नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक बड़े साइबर ठगी मामले को बेहद गंभीर मानते हुए केंद्रीय एजेंसियों और प्राइवेट बैंकों पर कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने इस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), केंद्रीय संचार मंत्रालय, प्रमुख टेलीकॉम कंपनियों और राज्य में संचालित सभी निजी बैंकों को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।


यह मामला उस वक्त प्रकाश में आया जब एक व्यक्ति, सुरेन्द्र कुमार ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए बताया कि उसे अपर जिला जज, देहरादून के नाम से दो अलग-अलग फोन नंबरों से कॉल आईं, जिनमें यह कहा गया कि उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी किया गया है और यदि वह 30,000 रुपये तत्काल जमा नहीं करता तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। रकम जमा करने के लिए कॉल करने वालों ने उसे चार स्कैन किए गए क्यूआर कोड भी भेजे, जिनमें से एक जिला देहरादून के नाम से था।


इस मामले में चौंकाने वाली बात यह रही कि जिन जजों और पुलिस अधिकारियों के नाम से वारंट और स्कैनर भेजे गए, वे सभी पूरी तरह फर्जी निकले। कोर्ट ने पाया कि देहरादून के जिस अपर जिला जज के नाम से वारंट बताया गया, ऐसी कोई भी न्यायिक अधिकारी न तो देहरादून और न ही हरिद्वार की किसी कोर्ट में पदस्थ हैं। जांच में सामने आया कि एक बड़े साइबर स्कैम के तहत यह पूरी योजना रची गई थी, जिसमें लोगों को सरकारी अधिकारी बनकर डराया जाता और डिजिटल पेमेंट के जरिए उनसे पैसे ऐंठे जाते।


इस गंभीर मामले की सुनवाई हाईकोर्ट की खंडपीठ, मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय के समक्ष हुई। कोर्ट ने याचिका को जनहित याचिका में परिवर्तित करते हुए कहा कि यह केवल एक व्यक्ति से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि समाज के बड़े वर्ग को प्रभावित करने वाला साइबर अपराध है। इस स्कैम में प्राइवेट बैंकों की भूमिका पर भी सवाल उठे, क्योंकि जिन चार बैंक खातों के माध्यम से ठगी की गई, वे सभी निजी बैंकों में ही खोले गए थे।


कोर्ट ने साइबर अपराध की रोकथाम में ढिलाई पर भी नाराजगी जाहिर की। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने याचिकाकर्ता से आरबीआई और संबंधित बैंकों को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया था। इस बार की सुनवाई में राज्य पुलिस के कानून-व्यवस्था प्रभारी आईजी नीलेश आनंद भरणे और एसएसपी साइबर क्राइम नवनीत भुल्लर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में पेश हुए। उन्होंने कोर्ट को सूचित किया कि साइबर अपराधों से निपटने के लिए एक एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) तैयार की गई है।


हालांकि, कोर्ट ने यह कहते हुए अधिकारियों को निर्देश दिए कि उक्त एसओपी को केवल कागजों तक सीमित न रखा जाए, बल्कि प्रदेश के प्रत्येक थाने तक इसे तत्काल प्रसारित किया जाए ताकि स्थानीय स्तर पर जागरूकता बढ़े और ऐसे मामलों की शुरुआती जांच प्रभावी रूप से की जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल एसओपी बनाना काफी नहीं है, बल्कि साइबर ठगी को लेकर जनता को सतर्क करने के लिए व्यापक जनजागरूकता अभियान भी चलाए जाएं।


कोर्ट ने विशेष रूप से यह प्रश्न भी उठाया कि जब इतने गंभीर फर्जीवाड़े का खुलासा एक महीने पहले हुआ, तो अब तक साइबर सेल और पुलिस द्वारा ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई? अदालत ने कहा कि यह मामला केवल किसी एक व्यक्ति को ठगने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह साइबर सुरक्षा और नागरिकों की निजता से जुड़ा गंभीर खतरा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


हाईकोर्ट के इस हस्तक्षेप ने न केवल इस बड़े डिजिटल स्कैम को उजागर किया है, बल्कि साइबर अपराधों की जांच में ढिलाई और प्राइवेट बैंकों व टेलीकॉम कंपनियों की भूमिका पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। आने वाले हफ्तों में कोर्ट द्वारा मांगा गया जवाब इस पूरे मामले की दिशा तय करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

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