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आखिर नाबालिगों के प्रेम प्रसंग में दोषी केवल लड़का ही क्यों? HC ने किया केंद्र और राज्यों से सवाल

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 11 सित॰
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 12 सित॰

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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नाबालिगों के प्रेम संबंधों से जुड़े मामलों में केवल लड़कों को ही हिरासत में लेने और उन पर पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा चलाने के प्रचलित रिवाज को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस जी नरेंद्र और जस्टिस सुभाष उप्रेती की डिवीजन बेंच द्वारा की गई, जिसमें अगली सुनवाई आगामी सप्ताह निर्धारित की गई है।


याचिकाकर्ता, जो कि वकील मनीषा भंडारी हैं, ने कोर्ट को बताया कि कम उम्र के प्रेम संबंधों में अक्सर लड़कों को ही दोषी मान लिया जाता है, चाहे वे लड़कियों से उम्र में छोटे ही क्यों न हों। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में लड़कों के विरुद्ध यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत मुकदमा चलाना एक सामान्य प्रथा बन गई है। इसके परिणामस्वरूप, लड़कों को न केवल स्कूल से दूर रखा जाता है, बल्कि उन्हें किशोर सुधार गृह में भी बंद कर दिया जाता है, जो उनकी मानसिक और शैक्षणिक प्रगति के लिए हानिकारक होता है।


मनीषा भंडारी ने यह भी जोर देकर कहा कि ऐसे नाबालिग लड़कों को हिरासत में लेने की बजाय उन्हें उचित परामर्श और सामाजिक पुनर्वास की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए, जिससे उनकी सुधरने और पुनः समाज में समायोजित होने की संभावना बढ़े। उनका तर्क था कि केवल लड़कों को ही दोषी मानकर और कठोर कार्रवाई करके न्यायिक प्रक्रिया में असमानता उत्पन्न हो रही है, जो कि नाबालिगों के हित में नहीं है।


इस मामले में कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है, ताकि नाबालिग प्रेम प्रसंगों के संदर्भ में कानून के प्रावधानों और उनके क्रियान्वयन की निष्पक्षता पर विचार किया जा सके। आगामी सुनवाई में इस मुद्दे पर और विस्तार से बहस होने की संभावना है।

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