HC का निर्देश- जिपं अध्यक्ष की मतगणना का वीडियो क्लिप याची-प्रत्याशी, वकीलों को दिखाए
- ANH News
- 21 अग॰
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अपडेट करने की तारीख: 22 अग॰

नैनीताल, 21 अगस्त 2025- उत्तराखंड की राजनीति में उस समय हलचल मच गई जब जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव में मतगणना के दौरान गड़बड़ी और कैमरा बंद कर वोट बदलने जैसे गंभीर आरोपों को लेकर दायर याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. नरेंदर और जस्टिस सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए मतगणना की वीडियोग्राफी और सीसीटीवी फुटेज याचिकाकर्ता और प्रतिवादियों को प्रदर्शित करने के निर्देश दिए हैं।
कोर्ट के आदेशानुसार, यह वीडियो गुरुवार सुबह 11 बजे डीएम कार्यालय में अधिवक्ताओं की उपस्थिति में दिखाया जाएगा। निरीक्षण के समय सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश जिलाधिकारी और एसपी को दिए गए हैं।
क्या हैं याचिकाओं में आरोप?
-यह याचिकाएं जिला पंचायत के चुनाव में प्रत्याशी रहीं पूनम बिष्ट और पुष्पा नेगी की ओर से दाखिल की गई थीं। याचिका में आरोप लगाया गया कि:
-14 अगस्त की अर्धरात्रि के बाद मतगणना के दौरान कैमरा बंद कर एक वोट में ओवरराइटिंग की गई, जिसमें अंक '1' को '2' में बदला गया।
-मतगणना स्थल पर प्रत्याशी को जानबूझकर देर से सूचना दी गई।
-रात 2:23 बजे नोटिस चिपकाया गया, जबकि उसमें 1:30 बजे उपस्थित होने को कहा गया था।
-पांच सदस्यों को जबरन उठाकर ले जाने की बात कही गई जिससे चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हुए।
-मतपत्र की फोटोग्राफ भी कोर्ट में प्रस्तुत की गई।
क्या कहा याचिकाकर्ता के वकील ने?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डीडी कामत ने कोर्ट में तर्क दिया-
-यह केवल परिणाम की बात नहीं, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की शुचिता का प्रश्न है।
-जब चुनाव आयोग के खिलाफ ही आरोप है, तो वहां शिकायत करने की बाध्यता उचित नहीं।
-सुप्रीम कोर्ट के मसीह बनाम चुनाव आयोग मामले की मिसाल दी, जिसमें मतगणना में पारदर्शिता न होने पर चुनाव सुधार की जरूरत को रेखांकित किया गया था।
सरकार और जिला प्रशासन की दलीलें:
सरकार की ओर से महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर और अन्य अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि ऐसे मामले में आपत्ति के लिए चुनाव याचिका दायर की जानी चाहिए, क्योंकि हाईकोर्ट ट्रायल कोर्ट नहीं है। यह याचिका पोषणीय नहीं है।
वहीं, जिलाधिकारी वंदना सिंह, जो इस चुनाव की रिटर्निंग ऑफिसर भी थीं, ने ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराते हुए बताया कि सभी प्रत्याशियों और उनके एजेंट्स को फोन और व्हाट्सएप के माध्यम से समय पर सूचना दी गई थी।
जिस वोट को लेकर विवाद है, उसमें पहली प्राथमिकता नहीं दी गई थी, सिर्फ दूसरी प्राथमिकता अंकित थी, जो नियम के अनुसार अमान्य होता है। एक मतपत्र पूरी तरह खाली था।
प्रत्याशियों को दो बार मतपत्र निरीक्षण का अवसर दिया गया, लेकिन एक प्रत्याशी उपस्थित नहीं हुई, जिससे रीकाउंटिंग का विकल्प समाप्त हो गया।
पूरी प्रक्रिया सीसीटीवी और स्वतंत्र पर्यवेक्षक की मौजूदगी में वीडियोग्राफ की गई, जिसे जरूरत पड़ने पर कोर्ट में प्रस्तुत किया जा सकता है।
कोर्ट के निर्देश और आगे की प्रक्रिया
हाईकोर्ट ने वीडियोग्राफी और सीसीटीवी फुटेज को याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों के अधिवक्ताओं को सामने दिखाने का आदेश दिया है।
इसके लिए महाधिवक्ता कार्यालय द्वारा तीन सरकारी अधिवक्ताओं को नामित किया जाएगा।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डीएस पाटनी, अवतार सिंह रावत और त्रिभुवन फर्त्याल का नाम प्रस्तावित किया गया है।
डीएम वंदना सिंह और एसपी जगदीश चंद्रा को निर्देशित किया गया है कि सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करें और इस निरीक्षण के दौरान अनधिकृत व्यक्तियों को प्रवेश न दिया जाए।
यह मामला सिर्फ एक वोट के बदलने का नहीं है, बल्कि पूरी चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता, निष्पक्षता और वैधता पर सवाल खड़े करता है। कोर्ट की सख्ती और वीडियोग्राफी की समीक्षा से यह स्पष्ट होगा कि क्या वास्तव में मतगणना प्रक्रिया में कोई अनियमितता हुई या नहीं।





