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उत्तराखंड में NO Work No Pay का आदेश, धामी सरकार का कड़ा फैसला

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 20 नव॰
  • 2 मिनट पठन
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पुष्कर सिंह धामी सरकार ने प्रदेशभर में कर्मचारियों की हड़तालों और आंदोलनों पर सख्त रुख अपनाते हुए अगले छह महीनों तक किसी भी प्रकार की हड़ताल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है। चुनावी वर्ष नजदीक आते ही अपनी मांगों को लेकर सक्रिय हुए सरकारी कर्मचारियों को यह निर्णय बड़ा झटका माना जा रहा है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि इस अवधि में राज्य के किसी भी सरकारी विभाग में कोई कर्मचारी हड़ताल या आंदोलन नहीं कर सकेगा।


इसी के साथ लंबे समय से नियमितीकरण की मांग को लेकर आंदोलनरत उपनल कर्मचारियों पर भी सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है। उपनल कर्मियों के लिए “नो वर्क–नो पे” का नियम तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया गया है, यानी जो कर्मचारी ड्यूटी पर उपस्थित नहीं होंगे, उन्हें वेतन भी नहीं मिलेगा। इसके संबंध में कार्मिक सचिव शैलेश बगौली और सैनिक कल्याण सचिव दीपेंद्र कुमार चौधरी ने बुधवार को दो अलग-अलग सख्त आदेश जारी किए, जिनके बाद कर्मचारी संगठनों में हलचल तेज हो गई है।


सरकार का कहना है कि प्रदेश में विभिन्न कर्मचारी संगठनों द्वारा चुनावी साल के दबाव में अपनी मांगों को मनवाने के लिए आंदोलन की राह चुनी जा रही थी। कई विभागों में हड़ताल की वजह से सामान्य सरकारी कामकाज प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई थी। इसी को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने अत्यावश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम, एस्मा 1966 के तहत हड़ताल प्रतिबंधित कर दी है। इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर संबंधित कर्मचारियों पर कानूनी कार्रवाई भी की जा सकेगी।

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पिछले कई दिनों से उपनल कर्मचारी नियमितीकरण और सेवा शर्तों में सुधार की मांग को लेकर हड़ताल पर थे, जिससे कई महत्वपूर्ण कार्यालयों का कामकाज बाधित हो रहा था। ऐसे हालात को देखते हुए सैनिक कल्याण सचिव ने उपनल के प्रबंध निदेशक ब्रिगेडियर जे.एन.एस. बिष्ट को निर्देश दिया कि तुरंत ‘नो वर्क–नो पे’ नीति लागू की जाए और सभी कार्यालयों को इसकी जानकारी दे दी जाए। आदेश में यह भी कहा गया है कि जो कर्मचारी ड्यूटी पर उपस्थित नहीं हो रहे हैं, उनकी अनुपस्थिति सख्ती से दर्ज की जाए और किसी भी प्रकार की रियायत न दी जाए।


सरकार के इस कदम से यह संदेश स्पष्ट हो गया है कि वर्तमान परिस्थितियों में वह किसी भी तरह के दबाव में आने के लिए तैयार नहीं है। प्रशासनिक कार्यप्रणाली को सुचारु रखने, विकास कार्यों की गति बनाए रखने और जनता को निर्बाध सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए सरकार किसी भी प्रकार के अवरोध को बर्दाश्त नहीं करेगी। चुनावी माहौल के बीच यह फैसला कर्मचारियों पर नियंत्रण स्थापित करने और सरकारी तंत्र को पटरी पर बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया निर्णायक कदम माना जा रहा है।

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