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धामी सरकार का बड़ा फैसला, छ: माह तक राज्य में हड़ताल पूरी तरह बैन

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 20 नव॰
  • 3 मिनट पठन
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उत्तराखंड में अगले छह माह तक राज्याधीन सेवाओं में हड़ताल पर शासन ने प्रतिबंध लगा दिया है। इस संबंध में कार्मिक सचिव शैलेश बगौली ने अधिसूचना जारी करते हुए कहा है कि यह फैसला जनहित को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। उत्तराखंड में राज्य कर्मचारियों और विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए यह आदेश जारी किया गया है। जिसके बाद अब कर्मचारी अगले छह माह तक हड़ताल नहीं कर पाएंगे।


कार्मिक सचिव शैलेश बगौली की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, लोकहित को ध्यान में रखते हुए अत्यावश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम, 1966 (जो उत्तराखण्ड राज्य में लागू है) की धारा 3(1) के तहत यह निर्णय लिया गया है। आदेश जारी होने की तारीख से आगामी छह महीनों तक राज्याधीन सेवाओं में किसी भी तरह की हड़ताल पूरी तरह निषिद्ध रहेगी।


शासन का मानना है कि सरकारी तंत्र की निरंतरता और जनसेवा की बाधारहित उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए यह कदम आवश्यक है, क्योंकि हाल के दिनों में कई विभागों में हड़ताल एवं आंदोलन की स्थितियां बनी थीं, जिनसे सरकारी कार्य प्रभावित हो सकता था।


उत्तराखंड सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय उन सभी सेवाओं पर लागू होगा जो राज्याधीन हैं। उपनल के माध्यम से कार्यरत कर्मचारी भी इस निर्णय के तहत आएंगे। बता दें कि उपनल कर्मचारियों के पिछले कई दिनों से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं, जिसके चलते सरकारी अस्पतालों सहित कई सरकारी विभागों में व्यवस्थाएं चरमरा गई हैं।


राज्य के विभिन्न विभागों में बड़ी संख्या में संविदा एवं आउटसोर्सिंग कार्मिक उपनल के जरिए तैनात किए गए हैं। शासन के इस निर्णय के बाद अब उपनल कर्मचारियों की संभावित हड़तालों या काम छोड़ो आंदोलनों पर भी प्रभावी रोक लगेगी। वहीं, इस निर्णय को जारी करने को लेकर शासन का तर्क है कि प्रदेश में विकास योजनाओं, कुंभ 2027 की तैयारियों, डिजिटल प्रशासन और सार्वजनिक सेवा वितरण जैसे कई कार्य चल रहे हैं। ऐसे में किसी भी प्रकार की हड़ताल से जनता को गंभीर परेशानी हो सकती है, इसीलिए सरकार द्वारा अधिनियम के तहत जारी यह प्रतिबंध अगले छह महीनों तक लागू रहेगा। इस अवधि में हड़ताल करने वालों पर कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है।उत्तराखंड सरकार ने आगामी छह महीनों के लिए राज्याधीन सेवाओं में किसी भी प्रकार की हड़ताल पर पूर्ण प्रतिबंध लागू कर दिया है। कार्मिक सचिव शैलेश बगौली द्वारा जारी अधिसूचना में स्पष्ट किया गया है कि यह निर्णय पूरी तरह से जनहित और लोकसेवा की निरंतरता को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। हाल के दिनों में कई विभागों में आंदोलन और हड़ताल की स्थितियाँ बनने लगी थीं, जिनसे सरकारी तंत्र के प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई थी।


अधिसूचना में कहा गया है कि अत्यावश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम, 1966, जो उत्तराखंड राज्य में लागू है, की धारा 3(1) के तहत यह प्रतिबंध तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है और अगले छह महीनों तक जारी रहेगा। इस अवधि में राज्याधीन सेवाओं में कार्यरत कोई भी कर्मचारी, चाहे वह नियमित हो, संविदा पर हो या आउटसोर्सिंग के माध्यम से कार्यरत हो, किसी भी प्रकार की हड़ताल नहीं कर सकेगा।


सरकार का मानना है कि राज्य की महत्वपूर्ण विकास योजनाएँ, कुंभ 2027 की तैयारियाँ, डिजिटल प्रशासन को सुदृढ़ करने के प्रयास तथा जनता को प्रदान की जाने वाली विभिन्न सेवाएँ निरंतर चलती रहनी चाहिए। हड़ताल की वजह से इन कार्यों में व्यवधान आता है, जिससे आम नागरिकों को गंभीर असुविधा का सामना करना पड़ सकता है।


उपनल के माध्यम से तैनात कर्मचारियों पर भी यह प्रतिबंध समान रूप से लागू होगा। पिछले कुछ समय से उपनल कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत थे, जिसके परिणामस्वरूप सरकारी अस्पतालों समेत कई विभागों में दैनिक कामकाज प्रभावित हो रहा था। सरकार का कहना है कि बड़े स्तर पर तैनात इन संविदा एवं आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की संभावित हड़तालें भी इस आदेश के बाद प्रभावी रूप से रोकी जा सकेंगी।


अधिसूचना में यह भी स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि प्रतिबंध की अवधि में हड़ताल करने या हड़ताल के लिए उकसाने जैसे किसी भी कार्य को कानून का उल्लंघन माना जाएगा, जिसके विरुद्ध आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। सरकार का तर्क है कि प्रशासनिक सुचारुता बनाए रखने और आम जनता को निर्बाध सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए यह कदम समय की आवश्यकता था।

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